भारत की धरती संतों, ऋषियों और महापुरुषों की जन्मभूमि रही है। इसी पावन भूमि पर पंद्रहवीं शताब्दी में एक ऐसे प्रकाशपुंज का अवतरण हुआ जिसने अंधकारमय समाज को दिशा दी वह थे श्री गुरु नानक देव जी। उनका जीवन केवल एक धर्म या संप्रदाय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने मानवता, समानता और प्रेम का ऐसा संदेश दिया जो कालातीत है। गुरु नानक देव जी ने कहा था ‘ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान, सब इंसान एक हैं।’ यह वाक्य उस समय के धार्मिक कट्टरता से भरे युग में एक क्रांति था, जिसने मनुष्यता को धर्म की दीवारों से परे जाकर देखने की सीख दी। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में तलवंडी में हुआ, जो आज पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। बचपन से ही उनमें अद्भुत संवेदना और सत्य की खोज की ललक थी। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, भेदभाव और असमानता को चुनौती दी। वे सिख धर्म के प्रवर्तक ही नहीं, बल्कि उस विचारधारा के जनक थे जो कर्म, सत्य और सेवा को जीवन का आधार मानती है। उनका संदेश था कि ईश्वर हर जगह है, और उसकी प्राप्ति मंदिर-मस्जिद नहीं बल्कि सच्चे कर्म और निर्मल हृदय से होती है। उन्होंने अपने जीवनकाल में हजारों मील की यात्राएँ कीं, जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है, ताकि समाज में जागृति फैलाई जा सके। उन्होंने सच्ची भक्ति का अर्थ समझाया जो दूसरों की सेवा में निहित है। लंगर की परंपरा, जिसे आज विश्वभर में सिख धर्म का आधार माना जाता है, उसी समानता और सेवा की भावना का प्रतिफल है। आज जब समाज फिर से विभाजन और स्वार्थ की खाइयों में फँसता जा रहा है, तब गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठी हैं। उनका जीवन संदेश देता है कि सच्चा धर्म वही है जो सबमें प्रेम जगाए और सभी को एक समान दृष्टि से देखे। भारत की यह दिव्य विभूति हमें सिखाती है कि सच्चा ईश्वर भीतर की करुणा और सत्य में बसता है, और वही मानवता की सबसे ऊँची साधना है।
निष्कर्ष: गुरु नानक देव जी की वाणी आज भी मार्गदर्शक दीपक की तरह है, जो बताती है कि जीवन का सार सेवा, सत्य और समानता में निहित है। उनका प्रकाश न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए अमर प्रेरणा है।
-संदीप साहू
