भारत एक युवा देश है। यहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा 15 से 35 वर्ष की उम्र के बीच है, जिसे ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ कहा जाता है। यह वर्ग किसी भी देश की प्रगति का इंजन होता है, क्योंकि इसी आयु वर्ग के लोग देश की अर्थव्यवस्था, नवाचार और उत्पादकता को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन जब यही ऊर्जा बेरोजगारी के दलदल में फंस जाती है, तो वही ताकत समाज के लिए चुनौती बन जाती है। आज भारत के सामने यही स्थिति है — युवा तो बहुत हैं, लेकिन रोजगार के अवसर सीमित हैं। यह एक ऐसी विडंबना है, जो हमारे सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक ढांचे को गहराई से प्रभावित कर रही है।
बेरोजगारी का मतलब सिर्फ यह नहीं कि किसी के पास नौकरी नहीं है। इसका अर्थ यह भी है कि व्यक्ति की क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा, उसके कौशल का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। भारत में करोड़ों ऐसे युवा हैं, जो पढ़े-लिखे हैं, डिग्रीधारी हैं, लेकिन उनके लिए न तो पर्याप्त नौकरियाँ हैं और न ही उन्हें उद्योगों की अपेक्षाओं के अनुसार प्रशिक्षित किया गया है। यह स्थिति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन भी पैदा कर रही है।
यदि हम बेरोजगारी के कारणों को समझने की कोशिश करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह केवल जनसंख्या बढ़ने का परिणाम नहीं है। असल में, भारत में बेरोजगारी की जड़ें कई परस्पर जुड़े कारणों में हैं — शिक्षा व्यवस्था की खामियाँ, उद्योगों में रोजगार सृजन की कमी, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, और सरकार की नीतियों का सीमित प्रभाव।
भारत में शिक्षा को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह अभी तक रोजगारपरक नहीं हो पाई है। विश्वविद्यालयों से निकलने वाले लाखों स्नातक केवल सैद्धांतिक ज्ञान लेकर बाहर आते हैं, लेकिन उनके पास व्यावहारिक कौशल नहीं होता। देश में हर साल लगभग 2.5 करोड़ युवा शिक्षा पूरी कर नौकरी की तलाश में बाजार में आते हैं, लेकिन उनमें से केवल 15 से 20 प्रतिशत ही ऐसे हैं जो ‘एम्प्लॉयबल’ माने जाते हैं — यानी जिन्हें तत्काल उद्योगों में लगाया जा सके। इसका कारण यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली अब भी पारंपरिक ढर्रे पर चल रही है, जहाँ डिग्री तो मिल जाती है, पर नौकरी के लिए जरूरी प्रशिक्षण नहीं।
दूसरा बड़ा कारण है – रोजगार के अवसरों की कमी। भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है, लेकिन यह वृद्धि “जॉबलेस ग्रोथ” साबित हुई है। उद्योगों में तकनीकीकरण और ऑटोमेशन के बढ़ते प्रयोग ने भी रोजगार की संभावनाओं को घटाया है। पहले जहाँ एक फैक्ट्री में सैकड़ों मजदूर काम करते थे, आज वही काम कुछ मशीनें कर रही हैं। डिजिटल क्रांति ने एक ओर काम को आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी का दायरा भी बढ़ाया है।
कृषि क्षेत्र में स्थिति और भी जटिल है। भारत की लगभग 45 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है, लेकिन यह क्षेत्र GDP में केवल 15-16 प्रतिशत योगदान देता है। यानी आधे से अधिक लोग एक ऐसे क्षेत्र पर निर्भर हैं, जो उनके जीवनयापन के लिए पर्याप्त आमदनी नहीं दे पा रहा। खेती में मशीनों के उपयोग, छोटी जोतों, और मौसम पर निर्भरता ने ग्रामीण बेरोजगारी को और गहरा दिया है। नतीजतन, बड़ी संख्या में ग्रामीण युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जहाँ उन्हें या तो अस्थायी काम मिलता है या फिर वे बेरोजगार रह जाते हैं।
सरकारी नौकरियों की बात करें, तो उनकी स्थिति भी बेहद सीमित है। देश में हर साल लाखों सरकारी पद खाली रहते हैं, लेकिन भर्ती प्रक्रिया लंबी और जटिल होने के कारण युवा वर्षों तक इंतजार करते रहते हैं। कई बार भर्ती परीक्षाएँ स्थगित हो जाती हैं या रिजल्ट आने में सालों लग जाते हैं। इस बीच युवाओं की उम्र और उम्मीद दोनों खत्म होने लगती हैं। यही कारण है कि आज सरकारी नौकरी का सपना लाखों युवाओं के लिए संघर्ष का प्रतीक बन चुका है।
निजी क्षेत्र में भी स्थायी नौकरियों का अभाव है। ‘कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड एम्प्लॉयमेंट’ और ‘गिग इकॉनमी’ के चलन ने स्थिर रोजगार की धारणा को लगभग समाप्त कर दिया है। युवा अब अस्थायी कामों पर निर्भर हैं — कभी डिलीवरी बॉय, कभी कॉल सेंटर एजेंट, तो कभी किसी स्टार्टअप के अस्थायी कर्मचारी के रूप में। ये नौकरियाँ न तो सुरक्षा देती हैं, न भविष्य की गारंटी। इससे युवाओं में आर्थिक असुरक्षा और मानसिक तनाव बढ़ रहा है।
महिलाओं में बेरोजगारी की दर और भी चिंताजनक है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में महिलाओं की श्रमशक्ति भागीदारी घट रही है। सामाजिक मान्यताओं, सुरक्षा की कमी और परिवारिक जिम्मेदारियों के कारण महिलाएँ घर से बाहर काम करने में हिचकिचाती हैं। इसके अलावा, उद्योगों और संस्थानों में महिलाओं के लिए पर्याप्त अवसर और सुरक्षित वातावरण का अभाव भी उन्हें पीछे रखता है।
यदि बेरोजगारी के सामाजिक प्रभावों की बात करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह समस्या सिर्फ अर्थव्यवस्था की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। बेरोजगार युवा अक्सर निराशा, अवसाद, और असंतोष का शिकार हो जाते हैं। यह मानसिक अस्थिरता उन्हें गलत रास्तों पर ले जा सकती है — अपराध, नशे की लत, हिंसा या आत्महत्या तक। हाल के वर्षों में युवाओं की आत्महत्या के मामलों में वृद्धि इस बात की गंभीर चेतावनी है कि बेरोजगारी सिर्फ पेट की नहीं, बल्कि मन की भी भूख बन गई है।
राजनीतिक दृष्टि से भी बेरोजगारी का असर गहरा है। बेरोजगारों की बढ़ती संख्या सरकारों के लिए अस्थिरता का कारण बन रही है। चुनावों में बेरोजगारी अब सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है। हर सरकार रोजगार सृजन का वादा करती है, लेकिन नीतियाँ अक्सर धरातल पर असर नहीं दिखा पातीं। “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया”, “स्किल इंडिया” जैसी योजनाओं ने कुछ उम्मीदें जरूर जगाई हैं, लेकिन उनकी गति और प्रभाव अभी भी सीमित है।
अब सवाल यह है कि समाधान क्या है? सबसे पहले, शिक्षा को कौशल आधारित बनाना होगा। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि ‘स्किल’ पर जोर दिया जाए। तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए, ताकि विद्यार्थी रोजगार के लिए तैयार होकर निकलें। आईटी, एआई, रोबोटिक्स, डेटा साइंस, हेल्थकेयर जैसे उभरते क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
दूसरा, सरकार को उद्योगों के साथ मिलकर रोजगार सृजन के नए रास्ते खोलने होंगे। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। छोटे और मझोले उद्योगों को आर्थिक सहायता दी जाए, ताकि वे अधिक लोगों को काम पर रख सकें। कृषि क्षेत्र में वैल्यू एडिशन और एग्री-प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया जाए, जिससे ग्रामीण बेरोजगारी कम हो सके।
तीसरा, स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देकर युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ाया जा सकता है। यदि युवाओं को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और बाजार तक पहुँच मिले, तो वे खुद रोजगार सृजनकर्ता बन सकते हैं। आज देश में लाखों युवा उद्यमी बनने की क्षमता रखते हैं, जरूरत सिर्फ सही मार्गदर्शन और अवसर की है।
महिलाओं के लिए भी विशेष नीतियाँ बनानी होंगी। उन्हें सुरक्षित और समान अवसर दिए जाएँ, ताकि वे भी अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकें। घर-आधारित कार्य, ऑनलाइन रोजगार, और माइक्रो-एंटरप्राइजेज के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया जा सकता है।
बेरोजगारी के समाधान में तकनीक की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। डिजिटल प्लेटफॉर्म, ऑनलाइन जॉब पोर्टल, और स्किलिंग एप्स के जरिए युवा आसानी से अवसरों तक पहुँच सकते हैं। सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर ऐसे डिजिटल समाधान विकसित करें जो युवाओं को स्थानीय स्तर पर काम से जोड़ सकें।
इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए। जैसे – हैंडीक्राफ्ट, बांस उत्पाद, हस्तशिल्प, डेयरी, फूड प्रोसेसिंग आदि। इससे न केवल पलायन रुकेगा, बल्कि गाँवों में ही रोज़गार सृजन होगा।
बेरोजगारी को केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से समझना जरूरी है। हर बेरोजगार व्यक्ति केवल एक संख्या नहीं, बल्कि एक सपना है जो अधूरा रह गया है। जब किसी युवा को उसकी योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता, तो केवल वह ही नहीं, पूरा समाज पीछे छूट जाता है।
आज भारत जिस आर्थिक और सामाजिक मोड़ पर खड़ा है, वहाँ बेरोजगारी का समाधान केवल एक नीतिगत मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि हम अपने युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में नहीं मोड़ पाए, तो यह ऊर्जा विनाशकारी भी हो सकती है।
इसलिए ज़रूरत है एक समग्र दृष्टिकोण की — जहाँ शिक्षा, उद्योग, तकनीक और सामाजिक सुधार, सब मिलकर एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाएं जिसमें हर युवा को अपने हुनर के अनुसार अवसर मिले। बेरोजगारी का अंत तभी संभव है जब समाज के हर स्तर पर ‘काम को सम्मान’ की भावना पैदा हो।
भारत की शक्ति उसके युवाओं में है, लेकिन यह शक्ति तभी सार्थक होगी जब उसे सही अवसर मिलेंगे। बेरोजगारी को मिटाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है — परिवारों का, संस्थानों का, और हर उस व्यक्ति का जो यह मानता है कि काम किसी के अस्तित्व का आधार है।
आज की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इस विशाल युवा वर्ग को आशा, अवसर और सम्मान का जीवन दिया जाए। जब हर हाथ को काम मिलेगा, तब ही भारत वास्तव में “विश्वगुरु” बन सकेगा। बेरोजगारी का समाधान कोई असंभव सपना नहीं, बस आवश्यकता है नीतियों के क्रियान्वयन में ईमानदारी, शिक्षा में सुधार, और हर युवा में आत्मविश्वास जगाने की।
यही वह रास्ता है जो भारत को आर्थिक समृद्धि, सामाजिक स्थिरता और मानवीय गरिमा की दिशा में आगे ले जा सकता है। बेरोजगारी सिर्फ एक समस्या नहीं, यह एक चेतावनी भी है — कि यदि हमने आज दिशा नहीं बदली, तो कल अवसरों की यह खिड़की हमेशा के लिए बंद हो सकती है। लेकिन अगर आज हमने इस चुनौती को अवसर में बदलने का साहस दिखाया, तो यह युवा भारत दुनिया के सामने एक नई मिसाल बन सकता है।
