इस अनोखे जीव में मिला गजब सिस्टम

SANDEEP SAHU
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विज्ञान की दुनिया में समय-समय पर ऐसी खोजें होती रहती हैं, जो हमारी समझ की सीमाओं को चुनौती देती हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अनोखे जीव की खोज की है, जिसमें पाया गया एक ‘गजब सिस्टम’ आधुनिक जीव विज्ञान की परिकल्पनाओं को हिला देने वाला है। यह जीव इतना विचित्र है कि इसके शरीर की संरचना और कार्यप्रणाली पारंपरिक जैविक सिद्धांतों से मेल नहीं खाती। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस जीव के शरीर में एक ऐसा जैविक सिस्टम विकसित हुआ है, जो अन्य किसी भी जीव में नहीं पाया गया — यह ऊर्जा के उपयोग और संरक्षण का एक बिल्कुल नया तरीका अपनाता है।


यह खोज ऑस्ट्रेलिया के समुद्री तट के पास की गई है, जहाँ शोधकर्ताओं को समुद्र की गहराइयों में यह दुर्लभ जीव मिला। इसका नाम फिलहाल *“ऑक्टोल्यूमिनस माइक्रोरा”* रखा गया है। यह एक सूक्ष्म आकार का समुद्री जीव है, जिसकी लंबाई मात्र कुछ मिलीमीटर होती है, लेकिन इसकी कार्य प्रणाली इतनी जटिल है कि वैज्ञानिक हैरान रह गए। इस जीव के शरीर में एक ‘बायो-इंटीग्रेटेड एनर्जी सिस्टम’ पाया गया है, जो बाहरी ऊर्जा स्रोत के बिना ही प्रकाश उत्पन्न करने में सक्षम है।


वैज्ञानिकों ने बताया कि यह जीव अपने शरीर में मौजूद सूक्ष्म कोशिकाओं के माध्यम से सूर्य की रोशनी, समुद्र के खनिज और जैविक तत्वों को एक साथ मिलाकर ऊर्जा बनाता है। यह प्रक्रिया न तो पौधों की तरह प्रकाश-संश्लेषण है, न ही जानवरों जैसी चयापचय क्रिया। यह एक बिल्कुल अलग प्रकार की जैविक प्रतिक्रिया है, जो ‘हाइब्रिड एनर्जी सिंथेसिस’ कहलाती है। इस प्रक्रिया में यह जीव अपनी कोशिकाओं में प्रकाश को संग्रहित कर धीरे-धीरे ऊर्जा में बदलता है और आवश्यकता के अनुसार उसे उपयोग करता है।


इस प्रणाली की सबसे अद्भुत बात यह है कि यह जीव ऊर्जा की बर्बादी लगभग नहीं करता। जहां सामान्य जीवों में ऊर्जा का उपयोग केवल 40-50 प्रतिशत तक ही प्रभावी होता है, वहीं *ऑक्टोल्यूमिनस माइक्रोरा* में यह क्षमता 95 प्रतिशत से अधिक पाई गई है। यही कारण है कि यह जीव बिना भोजन के कई हफ्तों तक जीवित रह सकता है।


शोधकर्ताओं ने जब इसके जीनोम का अध्ययन किया, तो पाया कि इसके अंदर एक विशेष प्रकार का प्रोटीन पाया गया है, जो सूर्य की किरणों के फोटॉनों को पकड़कर उन्हें रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसे वैज्ञानिकों ने “ल्यूमिनोप्रोटीन” नाम दिया है। यह प्रोटीन न केवल ऊर्जा बनाता है, बल्कि कोशिकाओं को अत्यधिक तापमान और दबाव से भी बचाता है। यही कारण है कि यह जीव समुद्र की गहराइयों में अत्यधिक अंधेरे और ठंडे वातावरण में भी जीवित रह सकता है।


इस खोज का महत्व केवल जैवविज्ञान तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस जीव का अध्ययन भविष्य में ऊर्जा उत्पादन और संरक्षण की नई तकनीकों को जन्म दे सकता है। यदि इस जीव के “ल्यूमिनोप्रोटीन सिस्टम” को प्रयोगशाला में विकसित किया जा सके, तो मानव जाति के लिए यह एक नई प्रकार की जैविक ऊर्जा स्रोत साबित हो सकता है — ऐसी ऊर्जा जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना, स्वाभाविक रूप से उत्पन्न की जा सके।


ऑस्ट्रेलियाई नेशनल मरीन रिसर्च सेंटर के प्रमुख डॉ. एंथनी ब्रुक्स का कहना है, “यह खोज न केवल समुद्री जीवन के रहस्यों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रकृति के भीतर अब भी कई ऐसे सिस्टम मौजूद हैं, जिन्हें मानव समझ नहीं पाया है। यह जीव धरती पर ऊर्जा उपयोग का एक वैकल्पिक मॉडल पेश करता है — जहां हर बूंद और हर कण का सर्वोत्तम उपयोग होता है।”


वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यह जीव पृथ्वी के जीवन-विकास के अध्ययन में भी नई दिशा दे सकता है। संभव है कि यह जीव उन प्राचीन जीवों की श्रेणी से हो, जिन्होंने अरबों वर्ष पहले ऊर्जा उपयोग की ऐसी प्रणाली विकसित की, जो आज तक छिपी हुई थी। इसके अध्ययन से यह भी समझने में मदद मिलेगी कि पृथ्वी पर जीवन किस प्रकार विकसित हुआ और अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाएँ कैसी हो सकती हैं।


शोधकर्ताओं ने इस जीव की संरचना को समझने के लिए उन्नत माइक्रोस्कोप और बायोस्कैन तकनीक का उपयोग किया। परिणामस्वरूप यह पाया गया कि इस जीव के शरीर में सूक्ष्म नलिकाओं का जाल है, जो ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करता है। इन नलिकाओं की संरचना किसी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट जैसी प्रतीत होती है — मानो यह प्रकृति का अपना ‘बायोलॉजिकल सर्किट सिस्टम’ हो।


यह खोज फिलहाल प्रारंभिक चरण में है, लेकिन इसके परिणाम इतने प्रभावशाली हैं कि दुनियाभर के वैज्ञानिक संस्थान अब इस जीव के अध्ययन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यदि इसके ऊर्जा तंत्र को समझकर जैव-तकनीकी स्तर पर लागू किया जा सके, तो आने वाले समय में यह नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।


**निष्कर्ष:**

*ऑक्टोल्यूमिनस माइक्रोरा* जैसा जीव यह साबित करता है कि प्रकृति अब भी हमें नई सीख दे सकती है। उसके भीतर ऐसे रहस्य छिपे हैं जो विज्ञान की सीमाओं से परे हैं। इस जीव में मिला ‘गजब सिस्टम’ न केवल जीवन की जटिलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भविष्य की ऊर्जा और पर्यावरणीय समस्याओं का हल शायद प्रकृति के इसी छोटे से जीव में छिपा है। यह खोज विज्ञान के इतिहास में एक नई रोशनी लेकर आई है — जो यह दिखाती है कि कभी-कभी सबसे बड़ा उत्तर, सबसे छोटे जीव के भीतर मिलता है।


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