अहमदाबाद/नई दिल्ली। देश की सुरक्षा एजेंसियों को हिला देने वाला मामला सामने आया है। गुजरात एंटी टेररिज़्म स्क्वॉड (ATS) ने आईएसआईएस से जुड़े तीन संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक एमबीबीएस डॉक्टर भी शामिल है। आरोप है कि यह डॉक्टर रिसिन (Ricin) जैसे घातक रासायनिक विष की तैयारी कर रहा था — वही विष जिसके ज़रिये अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा पर हमला करने की कोशिश की गई थी।
एटीएस ने बताया कि 35 वर्षीय डॉ. अहमद मोहीउद्दीन सैयद, जो हैदराबाद का निवासी है, को 8 नवंबर को अहमदाबाद-महेसाणा मार्ग पर स्थित आदालज टोल प्लाज़ा से पकड़ा गया। तलाशी के दौरान उसके पास से दो Glock पिस्तौलें, एक Beretta, 30 जिंदा कारतूस और चार किलो अरंडी के बीज (कैस्टर बीन्स) बरामद हुए, जिनसे रिसिन जैसे जानलेवा रासायनिक तत्व तैयार किए जा सकते हैं।
पुलिस जांच के अनुसार, सैयद ने पिछले छह महीनों में दिल्ली के आज़ादपुर मंडी, अहमदाबाद के नरोदा फल बाजार और लखनऊ स्थित आरएसएस कार्यालय की रेकी की थी। ये सभी स्थल भीड़भाड़ वाले और सार्वजनिक गतिविधियों के केंद्र हैं। सैयद के साथ उत्तर प्रदेश के शामली निवासी 20 वर्षीय दर्जी आज़ाद सुलेमान शेख और लखीमपुर खीरी के 23 वर्षीय छात्र मोहम्मद सुहैल मोहम्मद सलीम खान को भी गिरफ्तार किया गया है। जांच में खुलासा हुआ कि ये दोनों आरोपी डॉक्टर को हथियार और कारतूस उपलब्ध करवा रहे थे।
एटीएस सूत्रों के मुताबिक, सैयद का संपर्क इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) के अफगान ऑपरेटिव अबू खालिदा से था, जो उसे रासायनिक हमले की तैयारी के निर्देश दे रहा था। हथियारों की आपूर्ति पाकिस्तान से ड्रोन के माध्यम से कराई गई थी — यह प्रवृत्ति सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चिंता का विषय बन चुकी है।
यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाती है कि आतंकवाद अब केवल बंदूक या बम तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रासायनिक और जैविक आतंकवाद (Chemical-Biological Terrorism) की दिशा में बढ़ रहा है। रिसिन एक ऐसा ज़हर है जो कुछ मिलीग्राम मात्रा में ही व्यक्ति की जान ले सकता है। यदि इसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में फैलाया जाता, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते थे।
गौरतलब है कि अमेरिका में 2013 में मिसिसिपी निवासी जेम्स एवरट डचकी ने इसी रिसिन ज़हर से राष्ट्रपति बराक ओबामा और अन्य अधिकारियों को निशाना बनाने की कोशिश की थी। उसने रिसिन से सने पत्र ओबामा, सीनेटर रोजर विकर और जज सैडी हॉलैंड को भेजे थे। सौभाग्य से अधिकांश पत्र समय रहते पकड़ लिए गए, लेकिन अदालत ने उसे 25 वर्ष की सजा सुनाते हुए कहा था कि “ऐसा अपराध मानवता पर हमला है।”
भारत में अब उसी ज़हर का आतंकवादी इस्तेमाल करने की कोशिश सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती लेकर आई है। यह केवल हिंसक विचारधारा का नहीं, बल्कि वैज्ञानिक ज्ञान के दुरुपयोग का भी मामला है — एक एमबीबीएस डॉक्टर, जिसे जीवन बचाने का प्रशिक्षण मिला था, वही मौत का हथियार तैयार कर रहा था।
यह सामाजिक और मानसिक दृष्टि से भी गहरी चिंता का विषय है कि अब आतंकवाद शिक्षित तबकों तक पहुँच चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना यह साबित करती है कि आतंकवाद केवल गरीबी या हताशा का परिणाम नहीं, बल्कि वैचारिक कट्टरता का संगठित रूप है।
जांच में यह भी सामने आया कि सैयद और उसके साथी भारत के कई राज्यों में सक्रिय नेटवर्क के संपर्क में थे — हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात से लेकर अफगानिस्तान तक फैला यह मॉड्यूल आईएसआईएस के “रासायनिक जिहाद” अभियान का हिस्सा बताया जा रहा है।
फिलहाल, सभी आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। अदालत ने मुख्य आरोपी डॉ. सैयद को 17 नवंबर तक एटीएस की हिरासत में भेजा है।
यह मामला भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि आतंकवाद अब प्रयोगशालाओं से निकलकर समाज की भीड़ तक पहुँचने की तैयारी कर चुका है। सुरक्षा एजेंसियों को न केवल पारंपरिक हथियारों के खिलाफ, बल्कि CBRN (Chemical, Biological, Radiological, Nuclear) हमलों के प्रति भी सशक्त रणनीति बनानी होगी।
डॉ. सैयद की गिरफ्तारी यह संकेत देती है कि भारत को अब वैचारिक मोर्चे पर भी जंग लड़नी होगी — क्योंकि जब शिक्षित मस्तिष्क “जिहाद” के नाम पर ज़हर तैयार करने लगें, तो यह केवल राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं, बल्कि मानवता की चेतावनी बन जाती है।
