विदेश से लौटे ओवैसी के बदले तेवर: संसद में उठाएंगे पहलगाम सुरक्षा चूक का मुद्दा

SANDEEP SAHU
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विदेश से लौटे ओवैसी के बदले तेवर: संसद में उठाएंगे पहलगाम सुरक्षा चूक का मुद्दा

परेशन सिंदूर के बाद सरकार द्वारा विदेश भेजे गए प्रतिनिधिमंडल में शामिल एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बयान अब नए राजनीतिक संकेत दे रहे हैं। अल्जीरिया, कुवैत, बहरीन और सऊदी अरब की यात्रा के बाद भारत लौटे ओवैसी ने साफ किया कि भले ही उन्होंने विदेशों में भारत का पक्ष मजबूती से रखा, लेकिन देश के भीतर जो मुद्दे हैं, उन पर वे चुप नहीं बैठेंगे।

🔍 ‘घर की बात घर में’ की नीति लेकिन सवाल भी ज़रूरी

एक टीवी इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि विदेशों में भारत की पैरवी करने के बाद वो अब भारत सरकार की आलोचना कैसे करेंगे, तो ओवैसी ने जवाब दिया – "घर की बात घर में होगी, बाहर क्यों करेंगे?" यह बयान उस सोच को दर्शाता है जिसमें अंतरराष्ट्रीय मंच पर एकजुटता दिखाई जाती है, लेकिन देश के आंतरिक मसलों पर जवाबदेही भी सुनिश्चित की जाती है। उदाहरण के तौर पर, यदि घर में आग लगी हो, तो उसे बाहर बताने की बजाय बुझाने की कोशिश पहले घर के भीतर की जाती है — ओवैसी की सोच कुछ ऐसी ही प्रतीत होती है।

⚖️ लोकतंत्र की रीढ़: आलोचना और सवाल

ओवैसी ने स्पष्ट कहा कि वह मॉब लिंचिंग, गौरक्षा के नाम पर हिंसा या संवैधानिक अधिकारों के हनन पर मुखर रहेंगे। उनका यह कहना कि "असदुद्दीन ओवैसी कभी बदलने वाला नहीं है," उनकी राजनीतिक शैली का प्रतीक है — स्पष्टवादी, विरोध में खड़े होने वाले और खुद को एक स्वतंत्र आवाज़ मानने वाले नेता।

CAA, तीन तलाक कानून और वक्फ बिल जैसे पुराने मुद्दों पर उनका रुख जस का तस है। वे मानते हैं कि लोकतंत्र में सरकार की नीतियों की आलोचना करना देशद्रोह नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सेहत के लिए ज़रूरी प्रक्रिया है।

🚨 पहलगाम हमला और सीजफायर पर नाराज़गी

ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि जब भारत ने एकतरफा सीजफायर की घोषणा की, तब इसकी सूचना देश को सरकार की तरफ से मिलनी चाहिए थी, न कि अमेरिका के राष्ट्रपति के ट्वीट से। ये बयान बताता है कि ओवैसी केवल विपक्ष की भूमिका नहीं निभा रहे, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर पारदर्शिता की मांग भी कर रहे हैं।

साथ ही, पहलगाम में हुई सुरक्षा चूक पर उन्होंने मानसून सत्र में सवाल उठाने की घोषणा की है। वे चाहते हैं कि इस पर संसद में खुली बहस हो — अगर सरकार इसे संवेदनशील मामला मानती है, तो 'इन-कैमरा डिबेट' हो सकती है, जैसी कि चीन युद्ध के समय हुई थी।


🔚 निष्कर्ष

ओवैसी का यह रुख स्पष्ट करता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर वह भारत की छवि के लिए खड़े हैं, लेकिन घरेलू स्तर पर लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए मुखर रहेंगे। यह दोहरी भूमिका — एक सजग विपक्ष और एक सच्चे लोकतांत्रिक — भारतीय राजनीति में एक ज़रूरी संतुलन को दर्शाती है। आने वाले मानसून सत्र में उनके सवाल सरकार के लिए असहज हो सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र के लिए यह बहसें बेहद जरूरी होंगी।

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